Honey bee types


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मधुमक्खी Honey bee

मधुमक्खियों का उपयोग भारतीय सभ्यता में प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। मानव जाति की उत्पत्ति के पहले से ही मधुमक्खियों में अधिक विकसित सामाजिक संगठन पाया जाता था। मधुमक्खियां हमारे लिए कई प्रकार से उपयोगी है। इनसे हमें शहद ,मोम तो मिलता ही है। साथ ही यह परागण को भी बढ़ावा देती है। जिससे प्रकृति में पेड़ पौधों का संतुलन बना रहता है। इसलिए आजकल मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है। जिससे इन्हें बचाया जा सके और इन से बनने वाले पदार्थों से धन भी कमाया जा सके। मधुमक्खियां एक कॉलोनी बनाकर रहती है इनकी कॉलोनी अत्यधिक व्यवस्थित होती है। एक अच्छी विकसित कॉलोनी में 40 से 50 हजार कीट पाए जाते हैं।  आज के इस युग में जहां राजतंत्र खत्म हो चुका है और प्रजातंत्र चलता है। वहां आज भी मधुमक्खियों  की पूरी कॉलोनी पर एक रानी मधुमक्खी का ही राज चलता है। प्रत्येक कॉलोनी में 3 जातियां पाई जाती है। इनमें एक रानी मधुमक्खी होती है  जो सभी मधुमक्खियों की प्रमुख होती है। दूसरे नर और तीसरे श्रमिक मधुमक्खियां पाई जाती है। रानी मधुमक्खी की औसत आयु 2 से 5 वर्ष की होती है । 


Honey bee types

मधुमक्खी का वर्गीकरण Classification of Honey bee


संघ Phylum             _    आर्थोपोडा Arthopoda

वर्ग Class                 _    इंसेक्टा Insecta


उपवर्ग Sub- class    _   टेरीगोटा Pterygota


गन Order                 _   हायमेनोप्टेरा Hymenoptera


कुल Family              _   ऐपीडी Apidae


वंश Genus               _    ऐपिसी Apis


मधुमक्खियों की जातियां Species of honey bee


ऐपीडी कुल में मात्र 5 जातियां शहद का उत्पादन करती है। मधुमक्खी पालन की दृष्टि से अनेक शहद उत्पादन करने वाली मधुमक्खियों में से पांच प्रमुख का वर्णन इस प्रकार है


1. ऐपिस डार्सेटा 


यह मधुमक्खी आकार में सबसे बड़ी होती है। इसकी लंबाई 20 एमएम होती है। यह शहद  सबसे अधिक मात्रा में एकत्रित करती है इसी कारण इन्हें भीमकाय मधुमक्खी भी कहते हैं। इन मधुमक्खियों का स्वभाव तेज, क्रोधी एवं प्रतिशोधी प्रकार का होता है और  इन्हें बेवजह परेशान करने पर यह हमला कर देती है। इनके व्यवहार  के कारण इन मधुमक्खियों को पालना बहुत ही कठिन कार्य होता है। इसके प्रत्येक कॉलोनी से 20 से 40 किलोग्राम शहद प्राप्त किया जा सकता है। 



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2. ऐपीस इंडिका


यह मधुमक्खी ऐ. डार्सेटा  से आकार में छोटी एवं शांत स्वभाव वाली होती है। इनके शांत स्वभाव के कारण इन्हें मधुमक्खी पालन में उपयोग किया जाता है। और इन्हें पालना भी आसान होता है। यह अपने छत्ते अंधेरी जगहों में बनाती है और अपने अनेक छत्ते एक के बाद एक समानांतर घनी झाड़ियों , वृक्षों एवं घरों में बनाती है।  ऐपीस इंडिका मधुमक्खी के द्वारा 3 से 4 किलोग्राम शहद की प्राप्ति प्रतिवर्ष होती है। 


3. ऐपीस फ्लोरिया


ऐपिस फ्लोरिया मधुमक्खी अपना छत्ता खुले स्थानों में बनाती है। यह सामान्यतः डंक नहीं मारती है। इसका पालन अभी-अभी आरंभ हुआ हैै। यह बहुत कम मात्रा में शहद देती है। इसलिए इसे अधिक पाला नहीं जाता इससे 250 ग्राम प्रति छत्ता शहद की प्राप्ति होती है।  भले ही यह मात्रा में बहुत कम हो लेकिन इसका शहद बहुत अधिक मीठा होता है। 



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4. ऐपीस मेलीफेरा


इस प्रजाति की मधुमक्खियां भारत में नहीं पाई जाती है। इसके द्वारा बहुत ही कम मात्रा में शहद उत्पादित किया जाता है। इसकी अनेक जातियों में से इटली में पायी जाने वाली जातियों को यूरोप एवं अमेरिका के अनेक भागों में कृत्रिम छत्तो में पाली जाती है। 


5. ऐपीस एडम्सोनी


ऐपिस एडम्सोनी मधुमक्खियां  आकार में अत्यधिक बड़ी और ना अत्यधिक छोटी होती है यह मध्यम आकार की होती है। यह मधुमक्खियां अफ्रीका में पाई जाती है। इनके द्वारा प्रतिवर्ष 4 से 5 किलोग्राम शहद उत्पादित किया जाता है। इसलिए मधुमक्खी पालन में इनका प्रयोग किया जाता है। 





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